Ritu

Ritu Reflects

Reflections on life, poetry, and personal experiences

अब रोकेंगे खुद को

अब रोकेंगे खुद को

वो अतीत बनने से;

जिसमें शायद

उस हर मोड़ पर हारे थे

जिसमें उसे जीतने की बेतहाशा उम्मीद थी

वो रिश्ता

मोड़

वो बिखरा बिखरा

सा उसका दौर

रोकेंगे उसे

फिर

जा रही ऋतु की

पतझर बनने से

वो शामिल

खुद में

खुद की गुनगुनाहट में

रोक लेंगे

उसे

कोई

सरसराहट बनने से