अब रोकेंगे खुद को
अब रोकेंगे खुद को
वो अतीत बनने से;
जिसमें शायद
उस हर मोड़ पर हारे थे
जिसमें उसे जीतने की बेतहाशा उम्मीद थी
वो रिश्ता
मोड़
वो बिखरा बिखरा
सा उसका दौर
रोकेंगे उसे
फिर
जा रही ऋतु की
पतझर बनने से
वो शामिल
खुद में
खुद की गुनगुनाहट में
रोक लेंगे
उसे
कोई
सरसराहट बनने से